हरिद्वार ( Haridwar )
हरिद्वार (HARIDWAR)
पांच पुरियों में से एक हरिद्वार तीर्थ नगरी, जो महामाया देवी के नाम से प्राचीन काल में मायापुरी के नाम से विख्यात थी। जो कि आज हरिद्वार तीर्थ के नाम से जाना जाता है। हरिद्वार को हरिद्वार इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहीं से चारधाम यात्रा का शुभारंभ होता है यहां आने वाले श्रद्धालु हर की पौड़ी पर मां गंगा का स्नान करते हैं, स्नान के बाद संकल्प लेकर चारधाम यात्रा का शुभारंभ करते हैं। पूर्व में संसाधन ना होने के कारण श्रद्धालु पैदल ही चार धाम यात्रा किया करते थे, यात्रा कठिन होने के कारण चारों धाम की यात्रा कुछ ही लोग पूरा कर पाते थे बीच में ही उनके प्राण छूट जाया करते थे। बहुत ही कम लोग यात्रा करके वापस आ पाते थे। चार धाम यात्रा का बहुत ही कठिन मार्ग होता था जिसकी वजह से हर किसी को चार धाम यात्रा का पूर्ण फल नहीं मिल पाता था, लेकिन आज बहुत ही सुलभ है। हरिद्वार से तीर्थ यात्रा शुरू करने से पूर्व पवित्र होने के लिए पूर्व 5 कुंडों में स्नान किया करते थे गौरीकुंड, सूरजकुंड, ब्रह्मा कुंड, सती कुंड, भीमगोड़ा कुंड, उसके बाद यात्रा को सफल करने के लिए पंच देव दर्शन करते थे, जिनमें ब्रह्मा कुंड, मां गंगा में स्नान करने के उपरांत प्रथम नगर देवी महामाया देवी मंदिर, दूसरी भगवान दक्ष प्रजापति के दर्शन, तृतीय बिल्केश्वर महादेव मंदिर, चतुर्थ मां चंडी देवी एवं मनसा देवी के दर्शन उपरांत यात्रा का शुभारंभ किया जाता है।
वेदों में यात्रा करने के कुछ नियम बताए गये हैं जो इस प्रकार हैं
· जो मानव पैदल चल सकता है उसको वाहन से आना निषेध बताया है। तीर्थ पर पैदल आने वाले श्रद्धालु का एक पल एक हवन के बराबर बताया गया है।
· यात्रा करने वाले को तीर्थ से 5 किलोमीटर पूर्व ही विश्राम बताया गया है।
· तीर्थ पर मल मूत्र त्यागना भी निषेध बताया गया है।
· तीर्थ पर रात्रि को विश्राम करना भी निषेध बताया गया है। तीर्थ पर अगर थोड़ी देर भी विश्राम करना है तो नीचे चटाई बिछाकर ही विश्राम करना बताया है।
तीर्थ पर स्नान पूजा ध्यान करने के उपरांत तुरंत वापस होने से ही यात्रा का फल प्राप्त होता है।
वहां पर कोई भी गलती से भी किसी भी प्रकार का पाप ना हो इसीलिए यह सभी नियमों को हमारे वेदों में लिखा गया है। आज कल आने वाले आधुनिक श्रद्धालु पुण्य की जगह पाप करके जाते हैं, आज के आधुनिक श्रद्धालु तीर्थ पर सफाई का ध्यान रखने की जगह मल मूत्र तो त्यागते ही हैं तथा वेदों के अनुसार तीर्थ पर रात्रि विश्राम निषेध बताया है, लेकिन आधुनिक होटलों में रुक कर आचार विचार एवं गंदगी का विसर्जन करते हैं, बल्कि तीर्थ पर पूरी गंदगी फैला कर जाते हैं जिसकी वजह से उन्हें यात्रा का फल नहीं मिलता उल्टा पाप ही सर पर ढो कर जाते हैं। इस कलयुग में भी जो तीर्थ पर श्रद्धा भाव से पैदल चल कर, पूजा पाठ ध्यान कर, तुरंत वापस होने वाले श्रद्धालुओं को यात्रा का पूर्ण फल मिलता ही है
पंडित रामेश्वर गौड़, हरिद्वार